सिलिकॉन चिप्स के आविष्कार ने संचार की दुनिया को पूरी तरह बदल दिया। आज भी, यह तकनीक वैश्विक स्तर पर सूचना प्रसारण की नींव मानी जाती है। हालांकि, समय के साथ इसके काम करने के तरीके में बड़ा बदलाव आया है।
शुरुआत में सुधार हार्डवेयर की दक्षता बढ़ाने पर केंद्रित था। लेकिन अब शोधकर्ता इलेक्ट्रॉनों की जगह फोटॉनों — यानी प्रकाश कणों — को डेटा स्टोरेज और प्रोसेसिंग के लिए उपयोग कर रहे हैं। इसी कारण, सिलिकॉन फोटोनिक्स तेजी से विकसित हो रही है और डेटा सेंटर्स, सेंसर और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों में इसका महत्व लगातार बढ़ रहा है।
प्रकाश से तेज़, अधिक डेटा और कम ऊर्जा खपत
फोटॉन न केवल इलेक्ट्रॉनों से तेज़ गति से जानकारी ले जाते हैं, बल्कि वे कम ऊर्जा में अधिक डेटा प्रोसेस कर सकते हैं। हालांकि, इनका उपयोग भी आसान नहीं है। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि सिलिकॉन चिप में प्रकाश स्रोत को एकीकृत करना कठिन है।
अभी तक इंजीनियरों को लेज़र को अलग से चिप पर जोड़ना पड़ता है, जिससे निर्माण जटिल, महंगा और प्रदर्शन धीमा हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि चिप और लेज़र को अलग-अलग निर्मित किया जाता है, जिससे छोटे लेकिन असरदार अंतर उत्पन्न होते हैं।
अब चिप पर ही ‘उगाई’ जा रही है लेज़र
हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में अमेरिका और यूरोप के वैज्ञानिकों ने पहली बार सीधे सिलिकॉन वेफर पर लघु लेज़र सफलतापूर्वक विकसित की है। यह उपलब्धि सिलिकॉन फोटोनिक्स के क्षेत्र में एक बड़ा कदम मानी जा रही है।
शोधकर्ताओं ने यह प्रक्रिया पारंपरिक सीएमओएस (CMOS – कॉम्प्लिमेंट्री मेटल-ऑक्साइड-सेमिकंडक्टर) निर्माण पद्धति में पूरी की — वही तकनीक जिससे आज के इलेक्ट्रॉनिक चिप्स बनाए जाते हैं। इसका अर्थ है कि यह नवाचार मौजूदा उत्पादन लाइनों में भी अपनाया जा सकता है, जिससे बड़े पैमाने पर इसका निर्माण संभव हो सकेगा।
फोटॉनिक चिप्स की बनावट
एक आम सिलिकॉन चिप में चार प्रमुख घटक होते हैं: स्रोत (इलेक्ट्रॉन या फोटॉन उत्पन्न करने के लिए), वेवगाइड्स (प्रकाश या विद्युत के लिए रास्ता), मॉडुलेटर्स (जानकारी को एन्कोड या डिकोड करने के लिए), और फोटोडिटेक्टर्स (प्रकाश को विद्युत संकेत में बदलने के लिए)।
फोटॉनिक चिप में लेज़र ही प्रकाश का स्रोत होता है, जिसे चिप पर बनाना सबसे कठिन हिस्सा माना जाता है। वेवगाइड्स फोटॉनों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाते हैं, जैसे तारों में इलेक्ट्रॉन चलते हैं।
मॉडुलेटर्स प्रकाश की तीव्रता, तरंगदैर्ध्य या चरण को बदलकर उसमें सूचना डालते हैं। वहीं, फोटोडिटेक्टर्स प्रकाश संकेत को विद्युत संकेत में बदलकर डेटा निकालते हैं।
लेज़र कैसे काम करती है?
लेज़र का पूरा नाम है “लाइट एम्प्लीफिकेशन बाय स्टिम्युलेटेड एमिशन ऑफ रेडिएशन”। इसका मूल सिद्धांत है स्टिम्युलेटेड एमिशन — जिसमें उच्च ऊर्जा स्तर पर मौजूद एक इलेक्ट्रॉन जब किसी फोटॉन की टक्कर से ऊर्जा छोड़ता है, तो एक नया फोटॉन उत्पन्न होता है जिसकी ऊर्जा पहले फोटॉन के समान होती है। इस प्रक्रिया के बार-बार होने पर संगठित प्रकाश की किरण उत्पन्न होती है — जिसे हम लेज़र कहते हैं।
लेकिन समस्या यह है कि सिलिकॉन में ‘इनडायरेक्ट बैंडगैप’ होता है, जिससे यह प्राकृतिक रूप से प्रकाश उत्सर्जित नहीं कर सकता। इसमें इलेक्ट्रॉन को ऊर्जावान स्तर से नीचे गिराने के लिए एक अतिरिक्त कण की मदद चाहिए होती है।
नई खोज का भविष्य
इस नई तकनीक से न केवल लेज़र का निर्माण आसान होगा, बल्कि चिप्स की गति, डेटा प्रोसेसिंग क्षमता और ऊर्जा कुशलता भी बेहतर होगी। यह नवाचार फोटॉनिक्स को एक नया आयाम देने के साथ-साथ अगली पीढ़ी की कंप्यूटिंग और क्वांटम टेक्नोलॉजी के लिए रास्ते खोल सकता है।
यह खोज कंप्यूटिंग और सूचना तकनीक की दुनिया में एक बड़ा बदलाव लाने की क्षमता रखती है — जहां प्रकाश की किरणें भविष्य के डेटा के वाहक बन सकती हैं।